जिन्दगी की उलझनों में उलझता रहा,
बस उसके प्यार के लिए हरदम तरसता रहा
जानता था वो अब शायद ही कभी मुझे हासिल होगी,
फिर भी झूठे दिलासे से दिल बहलाता रहा,
सोचा था कभी तो वक्त मेरे साथ होगा पर
वो भी रेत कि तरह मेरे हाथ से फिसलता रहा शायद,
खुदा को ये भी नामंजूर था आखों में कैद करूँ उसके अक्स को
इसलिए तो हर लम्हा पानी कि तरह मेरी आखों से बहता रहा !
Wednesday, May 6, 2009
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1 comment:
nice written...
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