Sunday, September 28, 2008

हमने काटी हैं तेरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बारातें अक्सर
और तो कौन है जो मुझको तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तेरी बातें अक्सर
हाल कहना है किसी से तो मुख़ातिब हो कोई
कितनी दिलचस्प, हुआ करती हैं बातें अक्सर
हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर
उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर
हमने उन तेज़ हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर

ऐसा ही न हो....!!!

ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तेरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो
कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर
सोचता हूँ तेरे आँचल का किनारा ही न हो
ज़िन्दगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझको
दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
वो आँख अभी दिल की कहाँ बात करती है
कमबख्त मिलती है तो सवालात करती है
वो लोग जो ताउम्र सच्चा प्यार निभाते थे
इस दौर में तू उनकी कहाँ बात करती है
क्या सोचती है, मैं रात में क्यों जाग रहा हूँ
तू कौन है जो मुझसे सवालात करती है
कुछ जिसकी शिकायत है न कुछ जिसकी खुशी है
ये कौन-सा बर्ताव मेरे साथ करती है
दिल थाम लिया करते हैं सोच उन लम्हों को
जब रात गये तेरी साँसें बात करती है
हर लफ़्ज़ को छूते हुए जो काँप न जाये
बर्बाद वो अल्फ़ाज़ की औक़ात करती है
हर चन्द नया लफ्ज़ दिया, हमने ग़ज़ल को
पर आज भी दिल में वही इक वास करती है
ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझसे मुकरने लगा हूँ मैं
मुझको सँभाल हद से गुज़रने लगा हूँ मैं
पहले हक़ीक़तों ही से मतलब था, और अब
एक-आध बात फ़र्ज़ भी करने लगा हूँ मैं
हर आन टूटते ये मोहब्बत के सिलसिले
लगता है जैसे आज बिखरने लगा हूँ मैं
लोग कहते थे मेरा सुधरना मुहाल था
तेरा कमाल है कि सुधरने लगा हूँ मैं
इतनों का प्यार मुझसे सँभाला न जायेगा !
लोगो ! तुम्हारे प्यार से डरने लगा हूँ मैं
कभी ना झुका जो सर किसी के भी सामने
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं
हर लफ़्ज तेरे जिस्म की खुशबू में ढला है
ये तर्ज़, ये अंदाज़-ए-बयां हमसे चला है
अरमान हमें एक रहा हो तो कहें भी
क्या जाने, ये दिल कितनी चिताओं में जला है
अब जैसा भी चाहें जिसे हालात बना दें
है यूँ कि कोई शख़्स बुरा है, न भला है
सुनते हैं दर्द-ए-मोहब्बत दिल को तोड़ देती है
पर क्या करें अब ये दर्द इस दिल में पला है....

आज का ज़माना

ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का
सम्भल भी जा कि अभी वक़्त है सम्भलने का
बहार आये चली जाये फिर चली आये
मगर ये दर्द का मौसम नहीं बदलने का
ये ठीक है कि सितारों पे घूम आये हैं मगर
किसे है सलीका ज़मीं पे चलने का
फिरे हैं रातों को आवारा हमने देखा है
गली गली में समाँ चाँद के निकलने का

रखा है...

कौन कहता है तुझे मैनें भुला रखा है तेरी यादों को कलेजे से लगा रखा है
लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रखा है
तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी वो दिया आज भी सीने में जला रखा है
देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार मैनें अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है

हमसे भागा करो न दूर....

हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद-सी आँखों में घुली जाती है महकी महकी है शब-ए-ग़म तेरे बालों की तरह
और क्या इस से ज़्यादा कोई नर्मी बरतूँ दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
और तो मुझ को मिला क्या मेरी मेहनत का सिला चंद सिक्के हैं मेरे हाथ में छालों की तरह
ज़िन्दगी जिस को तेरा प्यार मिला वो जाने हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह...

Saturday, September 27, 2008

काश....!!!

ना समझ सका मैं खुद जिसको अधखुला राज़ अनकही बात मैं काश़ तुम्हे समझा पाता तेरी नज़रों के दो सवाल दो प्रश्नचिन्ह जिनके जवाब मैं काश़ कभी लौटा पाता कच्चे धागे इन सपनों के उलझे उलझे सुलगे सुलगे मैं काश़ कभी सुलझा पाता जुगनू बिखराती चाँद रात हाथों में हाथ दो पल का साथ मैं काश कभी दोहरा पाता ख़्वाबों से महकी सरज़मीं वो दिलनशीं कितनी हसीं मैं काश तुम्हे दिखला पाता वो गया मोड़ हम साथ छोड़ हैं अलग अलग इक कड़वा सच मैं काश इसे झुठला पाता

प्यार..इश्क और मोहब्बत....

इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
वो हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपनाजीने की तमन्ना है मरने का ज़माना है
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम थे ख़फ़ा उन से कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है
आँखों में नमी सी है चुप-चुप से वो बैठे हैं नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
है इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है
आँसू तो बहोत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन बिंध जाये सो मोती है रह जाये सो दाना है

आँखें...!!!

तेरी एक मद्धम मुस्कान देखने को तरस गयी मेरी आखें अब तो बोल दे दो लफ्ज़ मोहब्बत के तरस गयी है मेरी आखें दिखाया बहुत दुनिया ने देखती है सब तरसती आखें तुझसे प्यार के दोलफ्ज़ सुनने को तरस गई है मेरी आखें मचलती थी दीवानगी में तेरी सिर्फ़ तेरे लिए तरसती हैं ये आखें इश्क़ के जुनून से भारी थी तेरे ऐतबार को तरस गाये मेरी आखें सुना दे अपने नैनों से तेरे नैनों की झलक को तरस गाये मेरी आखें पीला दे दो घुट जाम के तेरी नशे को तरस गयी ये आखें डूबी रहे थी ख़यालो मैं तेरे तेरे ख्वाबों को तरस गाये ये आखें आजा आज कहे दे तू दिल से कुछ तेरे बाहों में झूमने को तरस गयी ये आखें .....
ऐसे चुप हैं के ये मंजिल भी खड़ी हो जैसे, तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे,
अपने ही साए से हर गम लरज़ जाता हूँ, रस्ते में कोई दिवार खड़ी हो जैसे,
मंजिल दूर भी है, मंजिल नज़दीक भी है, अपने ही पाऊँ में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे,
कितने नादान हैं तेरे भुलाने वाले के तुझे, याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे,
आज दिल खोल के रोया है दोस्त तो यूँ खुश है, चंद लम्हों की ये रात भी बड़ी हो जैसे...

दोस्ती

दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रहने का,बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की,देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं,येह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज,दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं,नाम की तो जरूरत ही नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी,पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं,कौन कहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी,दूर रह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं,सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते हैं अलग-अलग,दर्द हो इनको ओर, आंसू हमारे आते हैं,माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लिये,पर हम तो दोस्ती में अपना सिर झुकाते हैं,ओर एक ही दवा है गम की दुनिया में क्युकि,भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं...

सबसे सस्ता है...

ये खिला हुआ चाँद कहाँ कुछ कहता है,पर कुछ है यह जो मेरे मन में बहता है। वैसे तो हमेशा ही हँसते रहते हैं हम,अब कैसे कहूँ दिल कितना दुखता है। फिर देखने का मन है तुमको लेकिन,लंबा बहुत तुम्हारे घर का रस्ता है। औरों के तो नखरे भी होंगे लेकिन,ले लेना दिल मेरा ये सबसे सस्ता है।

ज़िन्दगी जी गए....

आँसू, जिल्लत, ग़म- न जाने क्या–क्या पी गए?मज़ाक ही मज़ाक में हम ज़िंदगी जी गए। सोचा था कभी सुकून से गुज़ारेंगे ज़िंदगी,पर बेकरार, हड़बड़ी में ज़िंदगी जी गए। ख़्वाब में हमनें तुमको था देखना शुरू किया,क्या हो रहा गुरु, सुना और हम सिहर गए। कैसे बताएँ थी ज़िंदगी कितनी कामयाब,बेक़रार– बेखुदी में सब हिसाब भूल गए।

Thursday, September 25, 2008

समझ मुझको उम्र-भर आया नहीं !

उठता रहा दिल से धुआँ,उनको नज़र पर आया नहीं,करता रहा दिल उनसे दुआ,तरस उनको मेरे पर आया नहीं ।मुलाकातें हुईं, कई बातें हुईं,कुछ तुमने कहा, कुछ हमने कहा,जो कहना था, सुनना था हमने मग़र,उसका जिक्र तक आया नहीं ।हम ढूँढें कहाँ, अपनी दर्दे-दवा,कोई मिलता नहीं है अपना यहाँ,हर रस्ता कहे, चल साथ मेरे,इस दिल को सब्र पर आया नहीँ ।कोई जुर्म नहीं, फिर भी मिलती सज़ा,ये कैसी मिली है मुझको कज़ा,हर पल क्यों मरूँ, दे कोई बता,समझ मुझको उम्र-भर आया नहीं ।कोई हो आसमाँ, या हो कोई ज़मीं,जहाँ खुशियाँ मिलें, न हो कोई ग़मीं,मतलब की दुनिया में मुमकिन नहीं,मेरे दिल को नहीं पर आया यकीं ।

जिंदगी जी लेंगें !

हँस के थोड़ी सी जिंदगी जी लेंगें !
कहीं चिंगारी तेरे दिल में भी है,नहीं तो यूँ धुआँ उठता ही नहीं ।है ये उम्मीद कि जी उठेंगें हम,वर्ना मैं तुम पे यूँ मरता ही नहीं ।दिल की ये बात तुमसे कहनी है,वर्ना बात तुमसे कुछ करता ही नहीं ।अपनी तो छोटी सी कहानी है,तुम न सुनते अपनी कहता ही नहीं ।हँस के थोड़ी सी जिंदगी जी लेंगें,तुम न मिलते तो मन यूँ हँसता ही नहीं ।

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है !कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का है अन्दर, लेकिन रो नही सकता !यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!मेरी चाहत को दुल्हन बना लेना, मगर सुन ले !जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!